शनिवार, 10 सितंबर 2016

डॉ. मदन गोपाल लढ़ा का राजस्थानी कहानी संग्रह “च्यानण पख’

च्यानण पख (राजस्थानी कहानी संग्रह) मदन गोपाल लढ़ा/ प्रकासक- कलासन प्रकाशन, मॉडर्न मार्केट, बीकानेर/  संस्करण- 2014/ पृष्ठ- 80/ मूल्य- 60/-
डॉ. मदन गोपाल लढ़ा
महाजन (बीकानेर) में 2 सितम्बर, 1977 को जन्में लढ़ा ने एम.ए., एम.एड. और पीएच.डी. किया है। राजस्थानी और हिंदी में समान गति से लेखन।
प्रकाशन : 
सपनै री सीख (राजस्थानी बाल कथा संग्रह) म्हारै पांती री चिंतावां (राजस्थानी कविता संग्रह) तथा च्यानण पख (कहानी संग्रह) के अलावा  अनुवाद की एक पुस्तक  तिणकला अर पांख्यां प्रकाशित। हिंदी में कविता संग्रह ‘होना चाहता हूं जल’ प्रकाशित।
वर्तमान में शिक्षा विभाग राजस्थान में हिंदी व्याख्याता पद पर सेवारत।
स्थाई संपर्क : महाजन (लूनकरनसर) बीकानेर
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पुस्तक के ब्लर्ब का अनुवाद :
कुछ कहने की कामयाब कोशिश
० श्याम सुन्दर भारती
      मेरी नजर में एक अच्छी कहानी वह है जिसका पाठ पाठक को विचार के लिए विवश कर देता है। 'च्यानण पख' की कहानियाँ पढने के बाद यह पुख्ता तौर पर कहा जा सकता है कि लेखक ने इन कहानियों के पात्र-चरित्रों की मार्फ़त कुछ न कुछ कहने की कामयाब कोशिश की है। 'आफळ' का नैरेटर हो चाहे 'दोलड़ी जूण' का वाचक, इनके पात्र बनावटी न लगकर हमारे आस-पास मौजूद व्यक्ति लगते हैं। 'च्यानण पख' निश्चय ही पुरुषवादी मानसिकता की परतें उघाड़ती सशक्त कहानी है। 'फांस' तो रोजमर्रा का बखेड़ा है जो अमूमन हर गली में मिल जाता है। 'झांक' कई समाजों की ज्वलंत समस्या है तो 'आरती प्रियदर्शिनी री गळी' आज की प्रेम-प्रीत की असलियत को उजागर करती है। संग्रह की सबसे उम्दा कहानी है- उदासी रो कोई रंग कोनी हुवै। यह एक चौड़े फलक की कहानी है जिसे पढने के बाद इतिहास के कई चित्र मगज में घूमने लगते है। युद्ध के कारण दरबदर हो अथवा देश के बंटवारे के कारण, या फिर अपने सपनों में रंग भरने के लिए अपनी जमीन से उखड़ना पड़े, वे देह से तो उखड़ जाते हैं पर उनकी मनगत अपने बीते हुए कल, अपने अतीत से मुक्त नहीं हो पाती। यह व्यक्ति की बड़ी कमजोरी, मगर मनोवैज्ञानिक सच है। 
     'च्यानण पख' की कहानियों में यथार्थ, प्रामाणिकता व सृजनात्मक ईमानदारी दृष्टिगोचर होती है। लेखक ने अपने इर्द-गिर्द के जाने- पहचाने परिवेश से सच को प्रत्यक्ष करने की सफल कोशिश की है। चेखव के अनुसार आदमी को यह बता दो कि सचमुच में वह कैसा है, तो वह ठीक हो जाएगा। लढ़ा ने अपनी कहानियों में ऐसी ही कोशिश की है।
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वर्तमान समय और समाज के अक्स
० डॉ. नीरज दइया, बीकानेर
         राजस्थानी भाषा के युवा कहानीकार मदनगोपाल लढ़ा के प्रथम कहानी-संकलन “च्यानण पख” में वर्तमान समय और समाज के अक्स को प्रस्तुत करती सत्रह कहानियां संकलित है। डायरी शैली में लिखी शीर्षक-कहानी “च्यानण पख” यानी शुक्ल-पक्ष एक ऐसी लड़की की कहानी है जो समय के साथ समझवान होती जैसे स्त्री-विमर्श को नई राह प्रदान करती है। कहानी अपनी शैल्पिक नवीनता के साथ-साथ अति-आत्मियता व निजता से लबरेज भाषा-शैली के कारण जैसे सम्मोहन का जादू बिखेरती पंक्ति-दर-पंक्ति आगे बढ़ती हुई अपने पाठकों को बांधने में सक्षम है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि यह पाठ अपनी आधुनिकता, परिवेशगत नवीनता के कारण भी ध्यानाकर्षित करता है, और इसे अत्याधुनिक तकनीकों से सज्जित स्वतंत्रता के मार्ग अग्रसर होती स्वाभिमानी नवयुवतियों के बौद्धिक-विकास और विश्वास के रूप में भी पढ़ा-देखा जा सकता है।
         मदन गोपाल लढ़ा की इन कहानियों में राजस्थानी जन-जीवन के उन छोटे-छोटे पक्षों को प्रमाणिकता से उभारने का प्रयास किया गया है, जिन से हम रोजमर्रा की दिनचर्या में अपने घर-परिवार और आस-पास के जीवन में सामना करते हैं। यहां कहानीकार का एक रचनाकर के रूप में लेखकीय-संत्रास है. तो वहीं सामाजिक अंधविश्वासों और रूढियों के प्रति टूटता मोह भी। घर, परिवार और समाज के अनेकानेक छोटे-बड़े घटना-प्रसंगों को कहानीकार के रूप में सुनाने के स्थान पर उन अनुभवों को भाषा से संजीवनी प्रदान कर जीवित करने का कौशल प्रभावित करता है।
         सभी स्थितियों में कहानीकार प्रश्नाकुलता के साथ बिना कोई हल सुझाए अपने अनुभव और चिंतन को जस-का-तस प्रस्तुत करने की निसंग्ता-निश्चलता का भाव अर्जित करने में सफल रहा है। संग्रह की कुछ कहानियों में नवीन प्रयोग भी किए गए हैं। यहां कहानी में उपशीर्षकों के अंतर्गत कोलाज द्वारा रची कहानियों में “आरती प्रियदर्शिनी री गली” और “उदासी रो कोई रंग कोनी हुवै” विशेष उल्लेखनीन है।
         कहानियों में प्रस्तुत अनुभवजन्य घटनाक्रम में अतिरिक्त लेखकीय कौशल यह भी है कि जिस किसी घटना-प्रसंग को कहानीकार ने लिया है वह अपनी चित्रात्मक-बिम्बात्मक भाषा द्वारा मर्मस्पर्शी बना है। इन कहानियों में विभिन्न कला माध्यमों यथा- चित्रकला, संगीत आदि से जुड़ी स्थानीयता और सर्वकालिकता का भी उल्लेखनीय प्रयोग हुआ है। निसंदेह कहा जा सकता है कि डॉ. मदन गोपाल लढ़ा की इस पुस्तक च्याण पख द्वारा समकालीन राजस्थानी युवा कहानी जैसे अपने शुक्ल-पक्ष में प्रवेश कर रही है।
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राजस्थानी कहानी का शुक्ल-पक्ष
० दिनेश चारण, जोधपुर
      राजस्थानी का युवा कहानी लेखन इन दिनों जहां खडा है, उसकी नींव लक्ष्मीकुमारी चूंडावत और बिज्जी जैसे पुरोधाओं ने रखी थी। उसी नई राजस्थानी कहानी  को उल्लेखनीय उडान नए मुहावरों, समकालीन कथ्य और शैलीगत प्रयोगों के साथ नई तकनीक के पंखों से मिली है।
      यह कहना शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी कि राजस्थानी के जिन रचनाकारों ने नई तकनीक और उसके माध्यमों के साथ कदमताल करते हुए अपनी रचनाशीलता को सभी तरह से अधिकाधिक पाठकों तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं रखी है, और उनकी कोशिशों और रचनाओं को पाठकों का भरपूर प्यार भी मिला है, उनमें एक सबसे जरूरी नाम मदन गोपाल लढ़ा का है। वे राजस्थानी कहानी का अतीत जानते हैं, उसका मिजाज पहचानते हैं, उसके वर्तमान के साक्षी भी हैं, और उसके हिस्से भी हैं, और उनकी कहानियों का व्यापक फलक राजस्थानी कहानी के भविष्य की आश्वस्ति भी है। इसका प्रमाण उनका यह ताजातरीन कहानी संग्रह है- ‘च्यानणपख’ यानी शुक्ल पक्ष।
      अपनी कहानियों में वे जिस तरह से बहुत मंथर कदमों से जीवन की गलियों में विचरण करते हुए आगे बढते हैं, धीरे-धीरे-धीरे उसे उन आसमानों तक ले जाते हैं, जहां पहुंचाना एक सजग कथाकार की कामना और अपेक्षा होती है। संग्रह की छोटी-छोटी सत्रह कहानियों में राजस्थान धड़कता है, और यह धड़कन सायास नहीं है, अपनी सहजता में यह धड़कन घटित होती है और इसकी गूंज हर पाठक महसूस करता है। उनका लोकेल इन कहानियों में जिस तरह आता है, लगता है कि यह कहानियां वहीं आकार ले सकती थीं, और यह उनकी कामयाबी है। संग्रह की शीर्षक कहानी ‘च्यानणपख’ शिल्पगत प्रयोग है और उसे पूरी ईमानदारी और कसावट के साथ कहानी में निभा ले जाना जाहिर हुआ है। वहीं ‘हेज’ कहानी अपनी बुनावट में बनयादी मानवीय संबंधों की विराटता को बहुत सरलता से रखती है। ‘आरती प्रियदर्शिनी री गली’ कहानी का सौंदर्य उसका अपनी निजता में आवश्यक विस्तार है। कहानी-दर-कहानी मदन गोपाल लढ़ा ऐसे खुलते हैं जैसे कोई बाबा पोटली से किस्से निकाल रहा हो। महीन बुनावट, पूरी कसावट, जिंदगी की आहट और जीने की मानवीय कसमसाहट उनके यहां निरंतर दिखती है। कथारस के साथ रचनात्मक सरोकारों का निर्वाह आसान नहीं होता। मदनगोपाल ने एकाध कहानी को छोडकर लगभग सभी कहानियों में इसे निभा लिया है। कई कहानियां अपने रस में प्यासा छोड जाती हैं, लगता है कि किस्सागों जल्दी सो गया दास्तां कहते कहते, यानी कुछ कहानियां थोड़ा विस्तार से होतीं तो और मजा आता। क्योकि मदन गोपाल समर्थ और सुपरिचित राजस्थानी कवि हैं, उनकी कुछ कहानियों में काव्यरस का आस्वाद लिया जा सकता है। यह उनकी ताकत है, इसे वो बनाए रखेंगे, ऐसी उम्मीद हम कर सकते हैं। हालांकि अनुभव संसार की जिस बुनियाद पर उनकी कहानियां रची गई हैं, कहीं कहीं किंचित कमजोर प्रतीत होता है, यह आगामी कहानियों में मजबूत होगा, ऐसा मुझे यकीन है।
      पूरे देश का कथा-साहित्य अंगडाई ले रहा है, लोकप्रिय लेखन में तो कथा सिरमौर है ही, शुद्ध साहित्य में भी इन दिनों कथा विधा चर्चा में है। उस पूरे भारतीय कथा संसार पर जितनी मेरी थोडी बहुत समझ और नजर है, उसके आधार पर कुल मिलाकर मेरी मान्यता है कि समकालीन भारतीय कहानी का उज्ज्वल पक्ष हिंदीतर भारतीय भाषाओं में परिलक्षित होता है। उसी उज्ज्वल पक्ष का वाजिब और अधिकारी प्रतिनिधित्व है 'च्यानणपख'।
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आधुनिक संदर्भों से जीवन्त सरोकार
० डॉ. मूलचंद बोहरा, बीकानेर

      कहानी की असली ताकत उसकी पठनीयता है। राजस्थानी कहानी में पठनीयता के आस्वाद का उदाहरण मदन गोपाल लढ़ा का कहानी संग्रह ‘च्यानण पख’ भी है। शिल्प और वर्ण्यविषयों की बहुरंगता लिए संग्रह की सभी कहानियां कथारस में समभाव है।
      कहानी ‘आरती प्रियदर्शिनी री गली’ मंटों की याद दिलाती है। कहानी में अंत तक कौतुहल बना रहता है कि आगे क्या होगा? करण को आरती मिलेगी या नहीं। अंत में पाठक करुणासिक्त होकर रो पड़ता है। इसी भांति करुण-कथा ‘उदासी रो कोई रंग कोनी हुवै’ व ‘दोलड़ी जूण’ कहानियों  में करुण-रस शुरू से आखिर तक स्रावित है। कहानी पठन के दौरान पाठक इस कदर द्रवित हो जाता है कि वह आस-पास की दुनिया से जुदा केवल कथा-नायिका ‘इमरती’ के दर्द में डूब जाता है। ‘धरती का भरोसा तोड़ने’ की अद्भुत व्यंजना है। लेखक अपनी पत्नी भूमि का भरोसा तोड़ने के कारण दर-दर भटक रहा है, और वहीं इमरती मरुभूमि छोड़कर मुंबई की चकाचौंध भरी स्वप्निल जिंदगी की चाह में भटक रही है तो ‘दोलड़ी जूण’ पति-पत्नी के झगड़े के बीच झूल रहे बच्चे की दुर्दशा का अंकन करती है।
     संग्रह में ‘धोळै दिन रो अंधारो’, ‘टूणो’ ‘फांस’ और ‘च्यानण पख’ जैसी कहानियां स्त्री नियति को लेकर मुखर है। इन कहानियों की औरतें शोषित-पीड़ित होते हुए भी विरोध करने में मुखर है। ‘च्यानण पख’ की नायिका मंगेतर की हदबंदियों से पीड़ित सांकेतिक अंधेरे में जीने लगती है, पर आखिर में लम्बी कशमकश के बाद वह इस रिश्ते को तोड़ने का निर्णय लेती है- ‘तिथ बदळगी अर च्यानण पख लागग्यो।’ इसी तरह ‘फांस’ घर की किच-किच और शराबखोरी से पति-पत्नी के रिश्ते में आई खटास को व्यंजित करती है। ‘धोळै दिन रो अंधारो’ की अमनड़ी कई जगह ब्याही गई, पर सुख उसे नसीब नहीं हुआ। सभी ने उसका वस्तु रूप में इस्तेमाल किया। हद तो तब हो जाती है जब उसे कहा जाता है- ‘जा अमनड़ी, साब नैं राजी कर दै।’ इस पर वह बिफर उठती है और उसे भी तलाक दे देती है।
     जड़ों से कटने के दर्द की जीवन्त दास्तां है कहानी- ‘आफळ’।    भारतीय समाज में जाति-जकड़न इस कदर मजबूत है कि शिक्षा उसे आज तक तोड़ नहीं सकी है। कहानी ‘रड़कता सवाल’ व ‘झाक’ इसी विचार बोध की कहानियां है। ‘झाक’ मरुभौम का आंचलिक शब्द है, जिसमें उम्मीद की लौ जगी रहने का आशय निहित है। यह झाक सजातीय वधू मिलने की है। बेटे की उम्र अधिक होने पर भी बलराम को सजातीय वधू मिलने की आस है। कहानी जाति बंधन और स्त्री भ्रूण हत्या जन्य भयावह स्थिति की ओर संकेत करती है। पाठक कहानी के परोक्ष में इन दोनों ज्वलंत मुद्दों की पड़ताल कर सकता है।
     कहानीकार की कलम परम्परागत मुद्दों के साथ-साथ आधुनिक संदर्भों से भी जीवन्त सरोकार रखती है। वाट्स अप्प, चैटिंग, ट्विटर, फेसबुक आदि कैसे व्यक्ति को झूठा, निकम्मा, अकेला और बेवफा बना रहे हैं? इसका सुन्दर निरूपण कहानी ‘तिरस’ में हुआ है। कहानीकार की सफलता इसी में है कि वह कथ्य को मुकम्मल शिल्प में ढालकर पाठक को परोस सके। कहना न होगा कि लढ़ा पूरी तरह सफल कहानीकार है। कहानियों का अंत कहीं भी पूर्व नियोजित नहीं लगता। पाठक मंत्र-मुग्ध हो जाते हैं और उसे चिंतन की महायात्रा में चलने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
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जीवन का पर्याय लढ़ा की कहानियां
० डॉ.मंगत बादल. रायसिंहनगर
मदन गोपाल लढा के इस कहानी संग्रह में कुल सतरह कहानियाँ हैं। कहानियाँ पढ़ने के उपरान्त लगता है कि लेखक कहानी को जीवन का पर्याय मानता है। वह तो केवल अपनी बात कहता है किन्तु वह कहानी बन जाती है। उसका यह कलात्मक प्रस्तुतीकरण कहानी में कथ्य की सहजता और यथार्थ के गुम्फन से प्रकट होता है।
    ‘आफळ’ कहानी में एक लेखक की मनःस्थिति का चित्रण है कि उसे कहानी के कथ्य के लिये कितना जूझना पड़ता है। उसके पास दिव्य दृष्टि और परकाया प्रवेष की शक्ति होती है तभी वह एैसा कर पाता है। इस प्रक्रिया में उसे अपने व्यक्तित्व का अपने पात्रों में विगलन करना पड़ता है। लेखक को स्वयं का आलोचक भी होना चाहिये तभी वह उत्कृष्ट रचनाकार बन सकता है। ‘दोलड़ी जूण’ में प्रेम विवाह के बाद सामाजिक एवं दाम्पत्य जीवन में आई कड़वाहट के यथार्थ चित्र हैं। कहानीकार की इसमें नैरेटर की भूमिका है वह उन कारणों की ओर तो संकेत करता है जो दाम्पत्य जीवन में दूरियाँ बढ़ाते हैं किन्तु उनके बच्चों को भूल जाता है। कहानी संकेत करती है कि व्यक्ति अपने अहं को दरकिनार करके ही अपने दाम्पत्य को सुरक्षित रख सकता है।
    ‘फांस’ कहानी में मूळा कुम्हार के दाम्पत्य चित्र हैं । वह शाम को शराब पीकर अपनी पत्नी से जिस प्रकार झगड़ा करता है उससे लगता है कि अब उनका दाम्पत्य नहीं बचेगा किन्तु जब वह सुबह देखता है कि मूळा चुपचाप अपने काम में लगा है तो उसके मन एक फांस अड़ी रह जाती है कि इतना झागड़ा करने के बाद आखिर उन में सुलह कैसे हो गई। शायद उस का संकेत इस ओर है कि पति-पत्नी में कोई छोटा या बड़ा नहीं होता। मनमुटाव तो यूं ही चलते रहते हैं।
    ‘खड़को’ कहानी एक खतरनाक संकेत करती है कि गरीब और मजलूम जिस दिन अपनी औकात पर आयेंगे ‘खड़का’ (क्रांति) होते देर नहीं लगेगी। दीपावली के अवसर पर गणपत के पास पटाखे खरीदने के लिये पैसे नहीं हैं जिससे वह अपना अपमान अनुभव करता है और धीरे से एक जलती हुई तीली दुकान में पड़े पटाखों पर फेंक देता है।
    ‘काठी बांथ’ में घर छूटने का दर्द (महाजन फील्ड रेंज में आये ग्रामवासियों का) है। यद्यपि उनको नये घर, मुआवजा आदि सब कुछ मिल गये किन्तु उनकी जो स्मृतियाँ पीछे छूट गइै हैं वे उन्हें परेषान करती हैं। ‘टूणो’ एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। अंधविश्वासी लोगों पर यह करारा व्यंग्य है। आज के वैज्ञानिक युग में भी लोग किसी बीमारी का डॉक्टरों से उपचार न करवाकर टोटकों का सहारा लेते हैं तो उनकी बुद्धि पर तरस आता है।
    धोळै दिन रो अंधारो, कोड, तिरस, हेज, छिब आदि सारी कहानियाँ किसी न किसी सामाजिक समस्या पर पाठक को सोचने के लिये विवश करती हैं। इन कहानियों में लेखक ने वैज्ञानिक उन्नति के परिप्रेक्ष्य में यह चित्रित करने का प्रयत्न किया है कि मनुष्य अपने आदिम रूप में उसी स्तर पर है। लेखक का भाषा पर पूर्ण अधिकार है। उन्होंने अपनी भाषा को ‘कमाया’ है। नये लेखकों को मदन गोपाल लढा की कहानियों को अवश्य पढना चाहिये इससे उनकी राजस्थानी भाषा के प्रति समझ बढेगी। इन कहानियों में लेखक के शैलीगत प्रयोग भी सराहनीय हैं।
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राजस्थानी कहानी का नया दौर
० प्रमोद कुमार चमोली, बीकानेर
   
डॉ. मदन गोपाल लढ़ा राजस्थानी के कवि, कथाकार, आलोचक और बाल साहित्यकार के रूप  में अपनी पहचान रखते हैं। संग्रह सत्रह कहानियां अनुभव की स्याही और यथार्थ की कलम से लिखी हुई है। मेरी नज़र में किसी कहानी को पढ़ते हुए व्यक्ति का संवेदनात्मक स्तर पर उस कहानी से जुड़ जाना कहानी की सफलता कही जा सकती है।    वर्तमान की तकनीकी प्रगति के कारण हम संवेदना शून्य हुए हैं। इस संवेदना शून्यता को मदन गोपाल पढ़ते हैं और अपनी कहानियों में संवेदनशील ढंग से रचते हैं। इस संग्रह की कहानियाँ राजस्थानी कहानी के परिवर्तन के दौर की कहानी कही जा सकती हैं। शिल्प और कंटेन्ट दोनो लिहाज से इस संग्रह की कहानियों को आज के दौर की कहानी कहना भी गलत नहीं होगा जो चमत्कार पैदा नहीं करती है वरन् उन्हें ध्वस्त करती हुई आज के भूमंडलीकरण, सूचना प्रौधोगिकी से उपजी समस्याओं को सामने रखती हैं।
    इस संग्रह की कहानियाँ अपने आस-पास की कहानियाँ लगती है। संग्रह की कहानी ‘आफळ’ कहानीकार के कहानी गढ़ने की जद्दोजहद की कहानी है। एक कहानीकार अपनी कहानी ढूंढने के लिए क्या-क्या करता है। उसे गाड़ी के डिब्बे में बैठे लोगों को पात्र समझकर उनकी मनगत पढ़ते हुए कहानी रचने की आफळ को प्रस्तुत करती है। दरअसल यहाँ लेखक अपनी रचना प्रक्रिया से परिचय करवा देता है। लेखक पाठक को इस कहानी का अंत अपने आधार पर तय करने की छूट देता नजर आता है।
    ‘दोलड़ी जूण’ कहानी परिवारों के टूटने की एक साधारण कहानी है। पति-पत्नी के रिश्तों में आने वाली खटास की कहानियाँ बड़े शहरों की कहानियों में अक्सर देखा जा सकता है। गाँव और कस्बों की कहानियों में इस तरह की खटास के माध्यम से भूमण्डलीकरण की दस्तक अब तक के इस अछूते क्षेत्र से जोड़कर देखा जा सकता है। इस कहानी के पात्र मनोहर जो समाज से लड़कर विजातीय प्रेमविवाह करता है उसका अंत में इतना कमजोर हो जान कुछ अखरता जरूर है।
    संग्रह की शीर्षक कहानी ‘च्यानण पख’ डायरी शैली में लिखी गई एक अच्छी कहानी है। भारतीय परिवारों में लड़की की शादी की चिन्ता से शुरूआत लेती, यह कहानी पुरुष मानसिकता पर आ जाती है। ‘धोळै दिन रो अंधारो’ औरत की बेबसी की कहानी को कहती हुई, उसके उठ कर संघर्ष करने की बात को सामने रखती है। ‘कोड’ बालमनोविज्ञान पर लिखी एक सरल सी कहानी है। ‘तिरस’ आज के सूचना युग में सोशियल साईटों के माध्यम से होने बिना जान-पहचान के होने वाली दोस्ती की कहानी है। जिसमें पत्नी अपने पति की अनजान दोस्त बनकर उसके सामने पहुँच जाती है।
    ‘आरती प्रियदर्शिनी री गळी’ अलग-अलग शीर्षकों में लिखी गई, नई तरह की कहानी है। मखमली आवाज के जादू में डूबा, इस कहानी का नायक ‘करण’ असली बात से टूट जाता है। कहानी में उसका टूटना दिखाया नहीं गया है वरन् पाठक के सोचने के लिए छोड़ दिया गया है। ‘‘उदासी रो कोई रंग कोनी हुवे’’ कहानी भी अलग-अलग शीर्षकों में लिखी कहानी है। इस कहानी के कैनवास में जैसलमैर, मुंबई, भुवनेश्वर और माउण्ट आबू के परिवेशों को लेखक ने बड़ी ही खूबसूरती से उकेरा है। इतना ही नहीं कहानी में संगीत, नृत्य और चित्रकला के पक्षों को भी भाषा की कूंची से बड़े ही बारीक ढंग से उकेरा गया है।
    कहानियों की सधी हुई भाषा कहानियों में ढीलापन नहीं आने देती है। यह लेखकीय कौशल ही जो घटनाओं को जीवन्त बना देता है। मदन गोपाल लढ़ा के इस संग्रह के बारे में कहा जा सकता है कि यह राजस्थानी कहानी के नए दौर की कहानियों का च्यानण पख है।
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राजस्थानी कहानी का नया विश्वास- च्यानण पख
० कमल किशोर पिंपलवा, कालू (बीकानेर)

         इक्कीसवीं सदी की राजस्थानी कहानी लगातार नए-नए बदलावों के दौर से गुजर रही है। अन्य भारतीय भाषाओं की तरह राजस्थानी कहानी में नवीन कथ्य व शिल्प विधान नजर आ रहा है। इस लिहाज से मदन गोपाल लढ़ा का कहानी संग्रह ‘च्यानण पख’ नवीन संभावनाओं को जगाने वाला व निजी लकब के प्रकाश से दीपित प्रतीत होता है। लढ़ा भाषा को एक औजार की तरह बरतते हैं। किताब की सतरह कहानियां राजस्थानी कहानी के परम्परागत ढांचे को तोड़कर नया ताना-बाना बुनती है।
          किताब में शामिल ‘आरती प्रियदर्शिनी री गळी’  प्रत्यास्मरण शैली की कहानी है जिसमें करण का मन-मस्तिष्क फ्रायडीय चेतना का संस्करण है। आरती प्रियदर्शिनी की कोयल से मीठी बोली से लगाव का भाव उसके अंतस में गहरे पैठ जाता है और करण की मनगत के इर्द-गिर्द एक कामयाब कहानी का रचाव हुआ है। करण, आरती, रंजना व अंकित फगत चार पात्रों से रची गई यह कहानी वैश्वीकरण के सांचे में उलझी नारी की संवेदनाओं व मजबूरियों को सामने तो लाती ही है, वहीं दूसरी ओर ‘साइको एनालिटिकल एप्रोच’ की कोख से उपजी कुण्ठा, विषम परिस्थितियों में करण के मन में जन्में आकर्षण को कथ्य में वाजिब स्पेस भी मिलता है। महानगरीय जीवन में स्थापित ‘एड हॉक’ सम्बन्धों की विसर्जित होती संवेदनाएं रचनाकार के कथ्य का मूल विषय है जिसे कहानीकार ने अपनी पैनी भाषा में पाठकों को सौंपा है।
        ‘रड़कतो सवाल’ धार्मिक पोंगापंथ और जातीय-नस्लीय गैरबराबरी का मुद्दा उठाती है। ‘हे्ज’  कहानी बचपन के प्रति लापरवाह रवैये की जीवंत बानगी है। ‘टूणो’ लोकमन की निश्छलता और नारी मन के कोमल स्वभाव को सामने लाती है। ‘छिब’ भूमाफिया की षडयंत्रकारी सोच को तथा ‘अेक सपनै री मौत’ आए दिन होने वाली हड़तालों व आंदोलनों के अनछुए पहलुओं को प्रकाश में लाती है। ‘च्यानण पख’ कहानी डायरी शैली का लाजवाब उदाहरण हे जिसमें एक मुकम्मल किस्म का प्रवाह है। पूरी कहानी अपनी व्यंजना शक्ति से मार्मिक बन पड़ी है। ‘तिरस’, ‘कोड’, ‘फांस’ व ‘आफळ’ जैसी कहानियां अपने इर्द-गिर्द के वातावरण को नए कथ्य व धारदार भाषा के सहारे बखूबी व्यक्त करती है।
         समकालीन युग की ज्वलंत समस्याएं व यांत्रिक जीवन की ऊहापोह ‘च्यानण पख’की कहानियों के विषय बने हैं। उदारीकरण, निजीकरण व भूमंडलीकरण की अवधारणाओं के बाद आदमी ‘मार्केटिंग मैटेरियल’ हो गया है। एक ओर पूरा संसार सम्पर्क के लिहाज से परस्पर जुड़ गया है वहीं मानवीय सम्बंधों में यांत्रिकता व भौतिकतावादी हस्तक्षेप निरंतर बढ़ता जा रहा है। ‘च्यानण पख’ की कहानियां पात्रों के संवेदनशील व निजी मुद्दों को सार्वजनिक पीड़ा व साझे दर्द का कीमती दस्तावेज बनकर सामने आती है।
         सांस्कृतिक-सामाजिक प्रदूषण व संवैधानिक अवमूल्यन के इस दौर में एक रचनाधर्मी युगीन संदर्भों से विलग कैसे रह सकता है। अपने-से लगते पात्रों व यथार्थवादी भंगिमा के साथ लढ़ा की कहानियां परम्परागत ‘हारिये-डोरिये व कंगन’उतारकर फेसबुक जैसे जन मंच पर लाइक-कमेंट की मार्फत कथा शैली की नई जमीन तोड़ती है। नूतन भावबोध गढ़ती ये कहानियां मनोविश्लेषण शैली से पाठकों को गोते लगवाती है व उनके अंतर्मन में जूझ पैदा करने में सफल रहती है।
          समेकित रूप से कहा जाए तो संग्रह की कहानियां राजस्थानी पाठकों में एक नवीन विश्वास, नई ऊर्जा व युगीन बदलाव की स्थापना करती नजर आती है। इस उल्लेखनीय काम के लिए कहानीकार बधाई के हकदार हैं।
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कहानी कला के नए रंग
० डा. नमामीशंकर आचार्य, बीकानेर
 
कहानी ‘आफळ’में कहानीकार रेलगाड़ी के डिब्बे में बैठी सवारियों की मनगत को उजागर करने का जतन करता है। हमारे आस-पास अनगिनत कहानियां व पात्र मौजूद हैं। जरूरत है तो उनकी अंवेर की। केवल अंवेर से ही काम नहीं चलेगा। उनको अपनी कल्पना के पंख सौंपने से ही वे पाठकों की प्यास बुझाने में कामयाब होंगे। ’आफळ’ का कथानायक रेलगाड़ी में अपने कहानीकार को जगाकर कथानक व पात्रों की तला्श की कोशिश करता है। कहानी में बेटे-बहू की चाह को पूरी करने के लिए एक बुजुर्ग अपने पुरखों की बनाई घर-गवाड़ी को बेचने की पीड़ा भोगता नजर आता है। अट्टे-सट्टे के नाम पर लड़कियों की इच्छाओं की बलि देने का दर्द हो या बेरोजगारी की आग में झुलसते युवाओं की दशा, कहानीकार इन सबकी मनगत को टटोलकर कहानी का ताना बाना बुनते हैं। कहानीकार कहानी के प्लॉट की तलाश के लिए जूझता है। अंततः उसको एक कथानक मिलता है जिस पर वह कहानी रूपी महल खड़ा करता है। एक निजी विद्यालय में अध्यापक मनोहर की जिंदगी की उथल-पुथल को  ‘दोलड़ी जूण’कहानी में सामने लाया गया है। मनोहर एक ठाकुर का बेटा है जो एक कायस्थ लड़की से विवाह कर लेता है। शुरू में तो उसकी गाड़ी ठीक चलती है परंतु फिर पति-पत्नी में मतभेद बढ़ जाते हैं। दोनों के अहम में पीसे जाते हैं बच्चे। मनोहर के बच्चों की पीड़ा पाठकों के अंतस को झकझोर देती है।
    ‘च्यानण पख’ औरत-मन की ऊहापोह, जो एक तूफान का रूप लेकर पुरुष मन के अहंकार को उखाड़ फेंकती है, की सच्ची तस्वीर है। यह हौसला ही औरत के जीवन को उज्ज्वल पक्ष में पहुंचा सकता है। कहानी की  नायिका उस वक्त विद्रोही बन जाती है जब उसका मंगेतर उस पर झूठी धौंस जमाने लगता है। कथानायिका को उसका दोहरापन पसंद नहीं आता है। उसको लगता है कि ऐसे आदमी के साथ उम्र भर कैसे निभेगी। वह अपने आत्मसम्मान के बारे में विचार कर विवाह से सगाई तोड़ देती है।
    वर्तमान युग में ऐसे लोगों की तादाद बढ़ गई है जो अपने सपनों में रंग भरने में ही विश्वास करते हैं भले ही इससे अन्य किसी का जीवन बदरंग हो जाए। ‘आरती प्रियदर्शिनी री गळी’निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए दूसरों की प्रीत, संवेदना व भरोसे को तोड़ने वाली लड़कियों की कहानी है। ‘फांस’ दाम्पत्य जीवन में अक्सर होने वाले फसाद का चित्र है। जातिवादी मानसिकता की परतें उघाड़ती ‘रड़कतो सवाल’कहानी में कोमल बाल मन का भी अंकन हुआ है। ‘काठी बांथ’ में विस्थापन की पीड़ा बयां हुई है। इसका परिवे्श व कथ्य की मार्मिकता पाठक को द्रवित कर देती है। ‘उदासी रो कोई रंग कोनी हुवै’का शिल्प विधान नया व अनूठा है। समेकित रूप से कहा जाए तो नवाचार, अनुभवपरक संवेदना, सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि और भाषा पर पकड़ लेखक के रचाव को नए रंग देती है।
      एक सफल कहानीकार वही होता है जो मानवीय संवेदना को अपने शब्दों की मार्फत पाठकों तक पहुंचाकर उनको विचार के लिए मजबूर कर देता है। सतरह कहानियों के संग्रह ‘च्यानण पख’ की अधिकांश कहानियों को पढ़ते हुए पाठक को ऐसा प्रतीत होता है कि वह इस घटना या बात से खुद रू-ब-रू हुआ है। कहानियों के पात्र हैं-बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं, विस्थापन की त्रासदी झेलने वाले लोग या वे जिन्होंने खुद अपने हाथों से अपना जीवन बरबाद कर लिया है।
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कहानियों में पसरे छोटे-बड़े सुख-दुख 
० नन्द किशोर शर्मा, लूनकरनसर (बीकानेर)
       ‘च्यानण पख’ कहानीकार डॉ. मदन गोपाल लढ़ा का पहला कहानी संग्रह है। संग्रह की कहानियों में कहानीकार लढ़ा ने समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले पात्रों को पाठकों के सामने लाने का सफल प्रयास किया है, 'च्यानण पख' पुस्तक की कहानियों को पढ़कर वरिष्ठ आलोचक श्याम सुन्दर भारती से सहमत हुआ जा सकता है कि कहानीकार ने प्रत्येक पात्र व चरित्र के माध्यम से कुछ ना कुछ सार्थक सन्देश देने का सफल प्रयास किया है।
       ‘आफळ’ कहानी वास्तव में कहानी-लेखन के रहस्य को उजागर करती हुई लेखक-मन के भीतर की अलौकिक दृष्टि से परिचय करवाती है, यह कहानी इस पुस्तक की वैचारिक गरिमा को बढाती है। 'दोलड़ी जूण' कहानी में कहानी-लेखन के संघर्ष को उजागर करता, मुख्य पात्र मनोहर की जिंदगी का मार्मिक चित्रण है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कहानी की भाषा ऐसी पाठक को अंत तक बंधे रखती है।
       'फाँस' कहानी दाम्पत्य-जीवन की कलह-सुलह का सांगोपांग समायोजन है। 'खड़को' कहानी सर्वहारा वर्ग की चेतावनी की कहानी है, दृश्य-चित्रण व भावुकता के लिहाज से बहुत सुंदर पाठ के उदाहरण के रूप से इसे प्रस्तुत कर सकते हैं। 'काठी बांथ' कहानी भावुकता से भरी कहानी है। इसकी भाव-भंगिमा करुणासिक्त है. जो कि पाठकों के रोम-रोम को छू जाती है।
        'टूणों' कहानी में व्यंग्य है जो समाज के यथार्थ को तो सामने लाता ही है, साथ ही पाखंडों से बचने की सीख भी कहानी देती है। 'एक सपने री मौत' कहानी आम आदमी के घर-गृहस्थी के संघर्ष की कहानी है, जिसमें एक साधारण व्यक्ति आए दिन होने वाले आंदोलनों में पिसता जाता है। इस कहानी का कथ्य-शिल्प और भाषा प्रभावी है। 'च्यानण पख' एवं 'आरती प्रियदर्शनी री गळी' फ़्लेश-बैक शैली में लिखी गई नए शिल्प की कहानियां हैं। जहां 'च्यानण पख' एक सशक्त महिला के हिम्मत की कहानी है, वहीं 'आरती प्रियदर्शनी री गळी' एकपक्षीय प्रेम की भावनात्मक कहानी है। इस कहानी का नायक करण आरती के लिए टूल मात्र बनकर रह जाता है, यही कहानी का रचाव है।
       'उदासी रो कोई रंग कोनी हुवै' कहानी में लेखक ने विभिन्न दृश्यों को अपने कथ्य से किसी चलचित्र की भांति उकेरा है, यह एक नायाब कथा-प्रयोग का उदाहरण है। मदन गोपाल लढ़ा के इस संग्रह की कहानियों में गाँव-शहर के परिवेश, मानवीय भाव-भंगिमाएं, छोटे-बड़े सुख-दुख का मर्मस्पर्शी अंकन हुआ है। अधिकांश कहानियां उम्दा और कहानी-कला कौशल का परिचय देती हैं।
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समय व समाज में बदलाव की पहचान 
० डा. जगदीश गिरि, जयपुर
      ‘च्यानण पख’ संग्रह अपने नाम के अनुरूप राजस्थानी कहानी में शुक्ल-पक्ष को लेकर अवतरित हुआ है। किताब की अधिकांश कहानियां अपने समय व समाज की नब्ज को पकड़ने में सफल हुई है। संग्रह की पहली कहानी ‘आफळ’ में रेलगाड़ी में सफर कर रहे बुजुर्ग और ‘काठी बांथ’ के बीरबल की पीड़ा समान है। एक अनमना-सा बैठा है क्योंकि आज वह अपने बेटे-बहू के दबाव में पुरखों का घर बेचने जा रहा है। बेटा-बहू शहर में रहते हैं। गाँव व गाँव के घर से उनको कोई लगाव नहीं है। वे तो घर बेचकर शेयर लेना चाहते हैं और ‘ओमनी’ कार खरीदना चाहते हैं। यह बाजार का दबाव संवेदनाओं पर भारी पड़ता है। ठीक इसी तरह बीरबल चौबीस साल बाद अपनी जन्मभूमि और पूर्वजों के खंडहर हुए घर आता है तो गाँव की हर एक चीज से जुड़ाव महसूस करता है। मगर उसके बेटे-बहू को गर्मी में खड़े रहना ही मु्श्किल लग रहा है। लोक देवता नाथू दादा का थान, भैरूंजी का देवरा व खेजड़े से जुड़ी बातों को याद करता बीरबल भावुक हो जाता है। महाजन फील्ड फायरिंग रेंज के लिए सरकार ने मुआवजा देकर चौंतीस गाँव खाली करवा लिए जिनमें बीरबल का गाँव मणेरा भी था।
         ‘आरती प्रियदर्शिनी री गळी’ कहानी सम्बंधों में आ रही जड़ता और स्वार्थों से पर्दा उठाती है। बाजारवाद ने ‘यूज एंड थ्रो’ की संस्कृति को बढ़ावा दिया है। बाजार में ऐसी चीजों की भरमार है। पेन, पेंसिल, रेजर-ब्लेड काम में लीजिए और फेंकिए। आज रिश्तों का भी इतना ही मोल रह गया है। नौकरी के लिए आरती अपने बोस को अपनी अस्मत देकर राजी करती है तो अवैध रूप से कोख में आई संतान से तुरंत अबोर्शन करवाकर निजात पा लेती है। यहाँ प्रेम व संबंध भी बिकाऊ हैं।
        ‘दोलड़ी जूण’ कहानी का किरदार मनोहर अपने घर- परिवार के विरोध को दरकिनार कर अन्य जाति की लड़की से लव मैरिज कर लेता है। पत्नी के नाम पेटोल पम्प के लिए वह जमीन बेच देता है परंतु पम्प आंवटन के बाद पत्नी उससे किनारा कर लेती है। वह दोनों बच्चों को संभालता है और एक निजी स्कूल में तीन हजार महीने में नौकरी करता है। सम्बंधों की स्वार्थपरता व ‘यूज एंड थ्रो’ का भाव यहां भी नजर आता है।
        ‘खड़को’कहानी जोरदार धमाका करती है। होली-दीवाली, तीज-त्योहार भी अब बाजार की गिरफ्त में आ चुके हैं। दीवाली पर पटाखों-फुलझड़ियों के नाम पर हजारों रुपए बरबाद किए जाते हैं। प्रेम-प्रसन्नता की जगह अब दिखावे ने ले ली है। गणपत के माध्यम से लेखक बाजारू ताकतों के खिलाफ धमाका करना चाहता है। वहीं ‘उदासी रो कोई रंग कोनी हुवै’ का नैरेटर और मुख्य पात्र इमरती भी नाम व दाम कमाने के फेर में अपनी जिंदगी खुद अपने हाथों बरबाद करते हैं। दोनों को मुंबई की चमक-दमक लुभाती है। रुपये सम्बन्धों से बहुत अच्छे तो लगते हैं मगर रुपयों से सुख नहीं खरीदा जा सकता, लेखक ने इस बात को कहानी में पुरजोर तरीके से उठाया है।
        शीर्षक-कहानी ‘च्यानण पख’ इस संग्रह की सबसे सशक्त कहानी कही जा सकती है। औरत जात की मुश्किलों को सामने लाती यह कहानी विमला जैसी हिम्मत वाली नारी से रू-ब-रू करवाती है। एक परम्परागत परिवार में पली बढ़ी विमला भले ही अपने भाई-भाभी की पसंद के परिवार में विवाह के लिए तैयार हो जाती है, पर अंततः उस व्यक्ति से विवाह से इनकार कर देती है जो उसकी भावना की कद्र नहीं करता। उस पर भरोसा नहीं करता, उसके स्वाभिमान को चोट पहुंचाता है।
        इस संग्रह की कहानियां उम्मीद जगती है कि राजस्थान के लेखकों में मदन गोपाल लढ़ा ने पाँव जमा लिए हैं। ये कहानियां आधुनिक समय व समाज में आ रहे बदलाव की पहचान को भाषा देती हैं, साथ ही जहां बदलाव की दरकार है उन क्षेत्रों पर अंगुली रखकर हमारा ध्यान भी खींचती है। शिल्प के स्तर पर भी ये कहानियां नए आयाम रचती हैं। राजस्थानी कहानी-परंपरा में इस संग्रह की पहचान कायम होगी, इसमें कोई संदेह नहीं है।
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परिवेश का यथार्थपरक अंकन 
० रामजीलाल घोड़ेला, लूणकरणसर
         राजस्थानी कहानी का समकालीन परिदृश्य संभावनाओं से भरा हुआ है। विषयगत नवीनता व समय के साथ कदमताल कहानी का सबल पक्ष है। यह देखना सुखद है कि कहानीकार अपने समय व समाज की सच्चाइयों का पूरी सूक्ष्मता के साथ पर्यवेक्षण कर ईमानदारी से उसका अंकन कर रहे हैं। समकालीन राजस्थानी कहानी में मदन गोपाल लढ़ा एक भरोसेमंद हस्ताक्षर के रूप में पहचाने जाते हैं। संग्रह "च्यानण पख" इसकी साख भरता है। उनकी कहानियों में इर्द-गिर्द के परिवेश का यथार्थपरक अंकन हुआ है।
         सामाजिक सरोकारों के साथ नवीन तकनीक के बढ़ती दखल को भी कहानीकार ने पूरी मुखरता से कहानियों में उतारा है। भाषागत सहजता व सशक्त शिल्प पाठकों को बांधने में समर्थ है। आलोच्य संग्रह की कहानी 'आफळ' कहानी की रचना-प्रक्रिया को उद्घाटित करती है। रचनात्मक-यात्रा के अनुभवों को दर्ज करती कहानी इस बात का प्रमाण भी है कि कहानीकार का कौशल अपने अंतस के द्वंद्व को कहानी के रूप में रच सकता है। 'दोलड़ी जूण' सामाजिक सरोकारों की नायाब कहानी है जिसमें मनोहर और उसकी पत्नी के माध्यम से कहानीकार ने सामाजिक भावभूमि की दरकती जमीन को सामने लाने का प्रयास किया है। 
           शीर्षक कहानी 'च्यानण पख' एक कस्बाई नवयुवती के सपनों व यथार्थ की कहानी है, जो डायरी शैली में लिखी गई है। इसमें पुरुष प्रधान समाज की संकीर्ण दृष्टि, तकनीक का बढ़ता दायरा तथा नारी के संघर्ष को अनूठे शिल्प के साथ अंकित किया गया है। 'फांस' समाज की विद्रूपताओं को उजागर करने वाली कहानी है। शराब का नशा कैसे कलह का कारण बन कर परिवार का सुख-चैन लूट लेता है इसकी बानगी 'फांस' में देखी जा सकती है। 'खड़को' बालमनोविज्ञान की बेजोड़ कहानी है। इसका मुख्य पात्र गणपत अत्यंत गरीब है। यह गरीबी उसके सपनों की उड़ान में बाधक बनती है। कहानी के अंत में दुकानदार से अपमानित गणपत का पटाखों के ढेर पर जलती दियासलाई फेंक कर भाग जाना उसकी मनःस्थिति को कहानी में विस्फोट की भांति लगता है। कहानी 'काठी बांथ' मातृभूमि से लगाव व विस्थापन की त्रासदी को बयां करती है। 'तिरस' का कथ्य इंटरनेट की चैेटिंग से जुड़ा हुआ है। यह कहानी आभासी दुनिया के छल-छद्मों से हमें परिचित करवाती है। 'धोळै दिन रो अंधारो' में औरत के संघर्षों का मार्मिक अंकन हुआ है। विकास के लंबे-चौड़े आंकड़ों के बरअक्स यह एक कड़वा सच है कि भारतीय समाज में औरत-जात को आज भी कठपुतली से अधिक नहीं माना जाता है। 
           संग्रह की 'आरती प्रियदर्शनी री गळी, हेज, कोड, रड़कतो सवाल, एक सपनै री मौत, झांक, छिब आदि कहानियां भी सामाजिक धरातल के खट्टे-मीठे सच को सामने लाने वाली रचनाएं हैं। कहना न होगा कि इस संग्रह के माध्यम से कहानीकार बड़ी उम्मीदें जगाने में सफल हुआ है।
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पुस्तक मेले 2018 में

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राजस्थानी कहानी का वर्तमान ० डॉ. नीरज दइया
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